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15 मार्च 2014
आखिर 15 मार्च आ ही गया ।
उत्साह-रोमांच अपने चरम पर था ।
विजयंत वेंचर क्लब की 6 टी मोटर बाइक एक्सपीडिशन के लिए तैयार थी 10 मोटर बाइक और उन पर सवारी के लिए 20 जांबाज ।
पर इस बार इन सभी के साथ यात्रा को यादगार बनाने में जुडा था एक ट्रक ।
शाम को 5 बजे जब गड्डी लेकर रवाना हुए इंदौर से तो नजारा जोरदार था । ट्रक में नीचे थी 10 बाइक और हमारा सामान फिर पार्टीशन होकर ऊपर की मंजिल पर बेहतरीन झकाझक सफ़ेद बैठक सजाकर बैठे थे हम सब ।
जैसी कल्पना की थी वैसा ही रोमांचक अनुभव रहा इस ट्रक में सफ़र का ।
आपस में परिचय हुआ और फिर हँसते हंसाते चुटकुलों का दौर शुरू हुआ । भजनों से गुजरता यह सिलसिला देर रात तक मुकेश,रफ़ी और किशोर लता तक और अंत में चाँद के गीतों तक जा पहुंचा ।
ऊपर खुला आसमान और बेहतरीन ठंडी हवाएं । बहुत अद्भुत था यह सफ़र जो जिन्दगी भर अपनी मधुर स्मृतियों से हमें रोमांचित करता रहेगा ।
हमारे ग्रुप के सबसे वरिष्ट बुजुर्ग आदरणीय कांतिलाल जी की हमें बिदाई में दी अंगूर की पेटियों का मजा लेते रास्ते में राऊ,खलघाट में अजय तिवारी जी के मित्र उदयशंकर जी के रामभरोसे होटल वालों की चाय की चुस्कियां लेते और रात को सेंधवा गायत्री आश्रम में साथ लाये भोजन को लेते,आश्रम के वैद्य श्री मेवालालजी की ज्ञानवर्धक बातों को सुनते और सांवरिया ढाबे पर राजेश अग्रवालजी के ब्यायीजी नंदू भैया के अमेरिकन नट्स और बटर स्काच आइसक्रीम का आनंद लेते सुबह लगभग 9 बजे हमारा कारवां भिवंडी में था । हर एक्सपीडीशन की तरह इस बार भी स्नेहीजनों की गजब की आत्मीयता और मान मनुहार का अनुभव शुरू हो चुका था ।रात में आश्रम के ही बंटी भैया ने 50 गरमा गरम समोसे भी हमारे साथ बांध दिए थे ।
16 मार्च 2014
हमारी एडवांस पार्टी में रात को ही भिवंडी पहुँच गए दीपक,किशन और वेल्लूर से एक्सपीडीशन में शामिल होने आये चिराग भी अब हमारे काफिले में शामिल हो चुके थे ।
लगभग 9.45 पर मुंबई की सड़कों पर बाइक घुमाते मन ही मन इस शहर की विशालता और यहाँ की कर्मवीर जनता की जिजीविषा को सलाम करते 21 लोगो का यह दल पनवेल की ओर अग्रसर था। चाय की तलब के चलते एक दुकान पर रुके ही थे कि महेश पोरवाल और मनीष नागर की बाइक पंचर हो गयी, सामने ही पंचर की दुकान थी तो एक्सपीडीशन का पहला पंचर पकना शुरू हुआ,पता लगा ट्यूब ही बदलवाना पड़ेगा। सब ट्यूब साथ लाये थे तो कोई समस्या नहीं आई।
कुछ ने चाय तो कुछ ने 2-2 गिलास बेहतरीन गन्ने का रस पिया।
यहाँ से निकले पेन के लिए जहाँ इन्तजार कर रहे थे महाराष्ट्र भारत स्काउट एवं गाइड के रायगढ़ जिले के जिला संगठन आयुक्त श्री गिरीश जी।
आदरणीय प्रसन्ना जी एवं अरूप जी सरकार सर ने दिल्ली में राज्य सचिव महाराष्ट्र स्काउट गाइड से बात करा दी थी तो राज्य सचिव महोदय ने पूरी महाराष्ट्र टीम को जाग्रत कर दिया ।
मुझे एक्सपीडीशन की तैयारियों के लिए लगातार फ़ोन आ रहे थे ठाना से संतोषजी के, पुणे से सोनायने जी के, रायगड़ से गिरीश जी के, कोल्हापुर से मोहनजी के व पाण्डव जी के ।
धन्यवाद राज्य सचिव महोदय और धन्यवाद पूरी उनकी महाराष्ट्र भारत स्काउट एवं गाइड की टीम जो हमारी एक्सपीडीशन को सफल बनाने में जुट गयी थी ।
पेन में जब पहुंचे लगभग 12.30 हो चुके थे। गिरिश जी अपनी पूरी टीम के साथ हमारे सत्कार के लिए मौजूद थे ।बाद में पता लगा कि वे सब सुबह 7 बजे से हमारा इन्तजार कर रहे थे। बहुत ही आत्मीय माहौल में प्रेमपूर्ण आग्रह के साथ हम सभी को भरपूर तरबूज,समोसे, पेडे और चाय के स्वल्पाहार से तृप्त कर दिया।छोटे से औपचारिक समारोह में हम सभी को पटेल मेडम एवं पाटिलजी व गिरिश जी ने खूबसूरत गुलाब के फूल भेंट में दिए। आज बेडेन पावेल याद आ गए हमारे स्काउट आन्दोलन के संस्थापक।
Salute to u Sir...
आपके द्वारा स्थापित इस आन्दोलन मे शामिल विश्वभर के सभी सदस्य कैसे एक दूसरे की मदद करते है यह हम प्रत्यक्षतः महसूस कर रहे थे।
अलीबाग जाने के लिए गिरिश जी की टीम से विदाई ली तो पाटिल मैडम अपने पति महोदय के साथ लगभग 25-30 किलोमीटर हमारे आगे हमारा मार्गदर्शन करते चल रही थी ।याने वो हमसे मिलने आज रविवार को छुट्टी के दिन भी 25-30 किलोमीटर चल कर आई थी।
अलीबाग का समुद्र किनारा हमारा पहला समुद्र तट पढाव था। हम लोग ज्यादा देर यहाँ नहीं रुके क्योंकि हमारा अगला पढाव था काशिद बीच,जो अलीबाग से ज्यादा खूबसूरत माना जाता है ।सेकड़ों की तादाद में सैलानी अलीबाग और काशीद बीच के बीच फैले होली की छुट्टियों का मजा ले रहे थे।
पूरा रास्ता खूबसूरत था। एक गाँव ख़त्म होता दूसरा शुरू हो जाता ।
हर गाँव के पीछे समुद्र का किनारा । इसलिए पूरा इलाका टूरिस्ट हब के रूप में बेहतरीन रूप से डेवलप हो गया है। ठहरने के लिए रिसोर्ट और रेस्टोरेंट की भरमार ।
काशीद बीच में घंटे भर समुद्र की लहरों से अठखेलियाँ करते समय कब बीत गया पता ही नहीं चला ।काशीद से आगे बड़े जंजीरा दुर्ग के लिए ।समुद्र बना शिवाजी महाराज का विशाल दुर्ग ।
सच ह्रदय में असीम सम्मान और गर्व महसूस होता है शिवाजी के पराक्रम के लिए ।क्या जिजीविषा थी कि पूरी मुग़ल सल्तनत को हिला कर रखा हुआ था ।कहते है पूरे महाराष्ट्र में छोटे बड़े सब किलो की गिनती करो तो 365 किले शिवाजी ने बनवाये हुए थे।
समुद्री किले को दूर से निहारते हम उस किले तक जाने के लिए रास्ता पूछ ही रहे थे कि पता लगा कि मुरुड से दिगी जाने वाली आखिरी फेरी छूटने में सिर्फ 15 मिनिट बाकी है। तुरंत काफिला फेरी जाने वाली जगह पहुँच गया । पहला अनुभव फेरी से जाने का ।पता लगा कि बाइक तो चली जायेंगी पर कार इस फेरी से नहीं जा पाएगी। कार लगभग 35-40 किलोमीटर का चक्कर लगाते हुए दूसरे रास्ते से हमें हरिहरेश्वर मिलेगी ।
करीब 10 मिनिट में 16 मोटर बाइक फेरी में चढ़ गयी ।लगभग 6 किलोमीटर का सफ़र 15 मिनिट में तय किया। मजेदार अनुभव रहा ।
दिगी से लगभग 50 किलोमीटर चल कर हम दिवे आगर पहुंचे तो रात की 8 बज चुकी थी। लगभग 9.15 बजे हमें भोजन मिला बिलकुल घर जैसा।
कमाल की एनर्जी थी कई साथियों की। राजेश अग्रवाल जी दौड़कर बाजार से मिठाई,दही और ककड़ी टमाटर ले आये । अजय गुप्ता जी और निलेश भूतड़ा जी शानदार छाछ बनाकर सबको पिलाते रहे। दीपक कोठारी जी और ओम आगिवाल जी ने सलाद काटकर खिला दिया। वहीँ भोजन आने पर योगेश कंधारी जी,चिराग कोठारी,अजय तिवारी जी और ओम जी सभी को प्रेमपूर्वक अंत तक भोजन कराते रहे फिर खुद भोजन करने बैठे ।
सलाम इन सब मित्रो की इस प्रेरणादायी कार्यप्रणाली पर।सहकारिता की यही भावना विजयंत की अब पहचान बन चुकी है जिस पर हम सभी को गर्व है ।
इन सब कार्यों में हँसते मुस्कुराते भोजन बनने को लगने वाले समय हम सभी ने बखूबी व्यतीत कर दिया ।
श्रीवर्धन होते हुए रात्रि लगभग 10 बजे हम हरिहरेश्वर पहुंचे। दिन भर की थकान से अधिकतर साथी बहुत जल्दी ही निद्रादेवी की गोद में चले गए ।
आज का सफ़र
भिवंडी से पेन 60 किलोमीटर
पेन से अलीबाग 41 किलोमीटर
अलीबाग से काशिद 37 किलोमीटर
काशिद से मुरुड जंजिरा 30 किलोमीटर
मुरुड जंजिरा से दिगी(फेरी) 6 किलोमीटर
दिगी से दिवे आगार 25 किलोमीटर
दिवे आगार से हरिहरेश्वर 37 किलोमीटर
17 मार्च 2014
शानदार नींद निकालने के बाद सुबह 5 बजे से उठना उठाना शुरू हो गया था । 6 बजे तक हम 10 लोग नहा कर बाहर निकल पड़े प्रभात फेरी के लिए। मस्ती में भजन गाते सबसे पहले पहुंचे हरिहरेश्वर महादेव के दर्शन को ।मंदिर बहुत ही शानदार लोकेशन पर स्थित है। क्या भव्य नजारा था समुद्र का ।सुबह सुबह आत्मा तृप्त हो गयी ।वापसी भी भजन करते हुए होटल तक पहुंचे ।
8.15 बजे हम निकल चुके थे फेरी के लिए ।हरिहरेश्वर से बनकोट हम फेरी में आये ।विशाल ट्रांसपोर्ट नाव थी फेरी के रूप में । 5-7 कारे,25-30 मोटर बाइक और अलगभग 100 लोगो को बैठाकर फेरी में हम बनकोट पहुंचे। बनकोट से दापोली के रास्ते में आज सभी को इन्दोरी इंस्टंट पोहा बनाकर नाश्ते में दिया साथ ही बड़ा पाव का भो आनंद लिया ।
दापोली में पेट्रोल पंप पर कार एवं सभी बाइक में डिजल-पेट्रोल भराकर हम दाभोल के लिए निकले जहाँ से हमें फेरी लेनी थी। हर जगह फेरी लेना याने 40-50 किलोमीटर की बचत करना ।
पेट्रोल भरवाकर साथी दीपक कोठारी जो ओम आगिवाल जी के साथ बाइक पर चल रहे थे कुछ चेंज करने के उद्देश्य से कार चलने लगे और कार चालक देवेन्द्रजी को ओमजी के साथ कर दिए ।
दापोली से चलते चलते सोच रहां था कि त्यौहार है आज धुलेंडी का पर यहाँ तो कुछ महसूस ही नहीं हो रहा है। और फिर याद आने लगा अपना इंदौर ,इंदौर के वे सब संगी-साथी-परिजन जिनके साथ होली खेला करते थे। आज सभी की बहुत याद आ रही थी।
15-20किलोमीटर आगे बड़े तो समुद्र के बेक वाटर में एक नयी होली मनती दिखी। कोल्ही मछुआरा समुदाय के परिवार के सारे सदस्य अपनी बड़ी बड़ी नावों में गुलाल से होली खेल रहे थे और फ़िल्मी संगीत को जोर जोर से बजाते हुए नाच गा रहे थे ।
ढाबोल लगभग 5 किलोमीटर बाकी रह गया था कि अजय गुप्ता जी अपनी बाइक मेरे साथ चलाते हुए बोले कि 10 में से 9 मोटर बाइक ही दिख रही है, ओम जी वाली बाइक नहीं दिख रही है ।मैंने कहा कि आप देखो सबसे पीछे रहो और उनको लेकर आओ ।हम ढाबोल पहुंचे कि अजय जी का फ़ोन आया गड़बड़ हो गयी है ।दीपक जी जो ओम जी के साथ आ रहे थे 25 किलोमीटर पहले पेट्रोल पम्प पर कार में आ गए थे और बाइक की चाभी उनके साथ ही आ गयी है । अब मैं और दीपक जी वापस जा रहे है और उन्हें लेकर आते है।
ढाबोल फेरी आफिस के पास ठंडी ठंडी लस्सी और शानदार फालूदा मिला ।सब टूट पड़े ।क्या तृप्ति मिली बयान नहीं कर पा रहा हूँ शब्दों मै ।
ढाबोल से ढोपली 2.5 किलोमीटर की फेरी 1.30 बजे थी । मैं और चिराग रुक गए इंतजार करने ढाबोल इस तरफ और बाकी सदस्य निकल गए उस पार फेरी से । 2.15 की फेरी भी निकल गयी पर हमारे साथी नहीं आये । अब चिराग को थोड़ी चिंता होने लगी तो मैंने यही कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि आने वाले 10-15 मिनिट में आ जायेंगे ।और सच में चारों साथी 3 बजे की फेरी के 10 मिनिट पहले आ गए तो शान्ति मिली सभी को ।आते ही सब को ठंडी ठंडी लस्सी पिलाई तो सब को मजा आ गया ।3 बजे वाली फेरी से उस पार पहुंचे तो सब एक नींद निकालकर फ्रेश हो चुके थे ।
ढापोली से हमारा काफिला निकला तसकाल फेरी के लिए । फेरी आने में 45 मिनिट थे तब तक फिर नाश्ते का दौर शुरू हो गया । इंदौर से साथ लेकर आई सेव परमल गजब एनर्जी दे देती थी सबको। अजय तिवारी जी बेसन की चक्की बनवाकर लाये थे तो दीपक कोठारी जी पेडे , याने इंदौर के चटोरो की क्षुधा शांति के लिए सब कुछ यहाँ भी मौजूद था ।अतुल काकानी जी ने सेटिंग कुछ ऐसी जमाई की फेरी आने के बाद सबको दुकानदार ने फेरी में गरमागरम चाय पिलवाई ।
तसकाल से जयगड़ फेरी हमारा इस टूर का अंतिम फेरी राउंड था ।इस फेरी नाव में छत पर भी बैठने की व्यवस्थित व्यवस्था थी तो शुरू हो गया नाच गाने का दौर भी
मजेदार अनुभव रहा इन 4 फेरियों से बाइक और कार के साथ सफ़र का ।
जयगड़ से गणपति पुले पहुंचे । मैं तो यहाँ पहले भी परिवार सहित आ चुका था पर अधिकतर साथियों के लिए यह स्थान नया था । बहुत से टूरिस्ट की मौजूदगी,इतने सारे होटल इस स्थल की लोकप्रियता का सबूत दे रहे थे ।राजेश अग्रवाल जी के साथ श्रीकांतजी और मैं रहने का इंतजाम करते तब तक अधिकतर साथी समुद्र तट पर नहां चुके थे। आज सबको फ्री कर दिया कि अपने हिसाब से कही भी भोजन करके होटल पहुंचे ।इस स्वतंत्रता का सभी ने खूब लुत्फ़ भी उठाया ।
आज एक बात मन को बहुत कचोटी। हुआ यूं कि हमने जब महाराष्ट्र भारत स्काउट गाइड को हमारा कार्यक्रम दिया था तो हमारा आज रुकने का प्लानिंग विजय दुर्ग था । इसलिए हमारा रुकने की व्यवस्था के करने के लिए स्काउट के जिला संगठन आयुक्त श्री पांडव जी 10 दिन पहले अपने हेडक्वार्टर से 110 किलोमीटर आकर विजयदुर्ग में हमारी रुकने की व्यवस्था करके गए थे । पर आज हम इतने लेट हो चुके थे कि गणपति पुले से विजयदुर्ग और 100 किलोमीटर जाने की स्थिति में नहीं थे। आज दिनभर मोबाइल में नेटवर्क भी नहीं था । गणपति पुले आकर जब यहाँ से फ़ोन लगाया तो पता लगा पांडव जी अपने सहायक के साथ आज फिर सुबह से विजयदुर्ग मौजूद थे । जब हमने बताया कि सर हम वहां विजयदुर्ग अभी नहीं आ पा रहे थे तो वे थोड़े निराश हुए पर फिर भी हमें दिलासा दे रहे थे कि सर कोई बात नहीं सफ़र में ऐसा होता है कि आप तय किये समय और स्थान पर कई बार नहीं पहुँच पाते है। अब वे रात को ही वापस अपने हेडक्वार्टर के लिए 110 किलीमीटर वापस जा रहे थे क्योंकि कल उनका वहां रहना जरुरी था । सच मन बहुत दुःख रहा था कि हमारे कारण उन्हें इतना कष्ट हो रहा था । पर साथ ही उनकी इस कर्त्तव्य परायणता के प्रति ह्रदय में गहरा आदर भाव था । धन्य है सर आप । हम एक दूसरे से कभी मिले नही, मिल भी पायेंगे कोई भरोसा नहीं, पर फिर भी आपने कितनी चिंता रखते हुए हमारे इंतजाम के लिए कर्त्तव्यरत रहते हुए स्काउट आन्दोलन की गरिमा को हम सभी की निगाह में और गौरवान्वित किया ।शुक्रिया सर ।
आज का सफ़र
हरिहरेश्वर से बनकोट 8 किलोमीटर
बनकोट फेरी 1 किलोमीटर
बनकोट से डाभोळ 75 किलोमीटर
डाभोळ फेरी 2 किलोमीटर
डाभोळ से जयगढ़ 50 किलोमीटर
जयगढ़ फेरी 2 किलोमीटर
जयगढ़ से गणपति पुले 20किलोमीटर
18 मार्च 2014
सुबह 5 बजे उठकर 5.30 बजे मैं श्रीकांतजी और चिराग गणपति पुले बीच पर पहुंचे तो वहां कोई नहीं था । आधा घंटा समुद्र किनारे गीली रेती पर चहल कदमी करते हुए गप्पे मारते रहे फिर जम के नहाए ।थोड़ी देर में राजेश अग्रवाल जी, अंकित तिवारी जी, रविशु और धनञ्जय जी भी आ गए ।गणपति पूले के प्रसिद्द गणेश मंदिर के दर्शन कर मैं 7.30 बजे तैयार होकर होटल के नीचे आ गया था । रात को सभी को यह सूचना दे दी थी कि सुबह 7.30 बजे मंदिर दर्शन और समुद्र स्नान करके होटल में नीचे इकठ्ठा हो जाना है । पर आज हम 1 घंटा लेट सिर्फ इसलिए हो गए कि हमारे करीब 7-8 साथी देर से उठे और तैयार होकर समय पर नहीं आ पाए । समय पर तैयार होकर देर करने वालों का इन्तजार बहुत कष्टप्रद होता है ।खैर...
साड़े आठ बजे हम निकले गणपति पूले से रत्नागिरी के लिए ।अभी 15 किलोमीटर चले थे कि रमेशजी की बाइक खराब होने की खबर आ गयी । उस बाइक को रस्सी से खींचकर 10 किलोमीटर रत्नागिरी लाये ।मेकेनिक ने बताया क्लच प्लेट गयी । बेहतरीन वाले पोहे , मिसल पाव् और बड़ा पाव का नाश्ता इस बीच हम कर चुके थे ।
यहाँ हमने दल को दो हिस्सों में बाँट दिया । रमेशजी संग बालेश जी और राजेश जी संग अन्कित जी को हमने बाइक सुधरवाने यही छोड़ दिया और बाकी लोग आगे के लिए रवाना हो गए ।
आज सड़क जोरदार थी ।घाट सेक्शन भी कम था । इसलिए किलोमीटर तेजी से कवर हो रहे थे । वैसे तो सारा रास्ता हमें अपेक्षा से ज्यादा खूबसूरत मिला था पर आज जब गणपति पूले से रत्नागिरी निकले तो अद्भुत द्रश्यावली आखों को सुकून देने वाली थी । बहुत ही सुन्दर रास्ता था, हर मोड़ पर आत्ममुग्ध कर देने वाले नजारों को निहारते हम आगे बढ़ रहे थे ।
रत्नागिरी से पावस,जैतापुर,पड़ेल होते हुए कुंकुनेश्वर पहुंचकर सबका इन्तजार करने लगे तो रत्नागिरी के हापूस आम पर चर्चा होने लगी । सारे रास्ते हम आम के खेत नहीं आम के जंगल देखते आ रहे थे । क्या बड़ी बड़ी केरिया और उतनी ही जबरदस्त उनकी चौकीदारी । यही पता लगा कि ओरिजिनल रत्नागिरी हापुस आम साइज के हिसाब से 600 रुपये से 1000 रुपये दर्जन में बिकते है यहाँ पर और फिर उसपर मुनाफा जुड़ता चला जाता है। हमें तो समझ ही नहीं आया कि अगर यहाँ हापूस के ये भाव है तो इंदौर में हम फिर हापूस के नाम पर क्या खाते है ।
बाकी साथियों का इन्तजार करते करते पता चला कि हमारे पीछे चलनेवाली 3 बाइक और कार दूसरे रास्ते से हमसे आगे निकल चुकी है । तो आज मालवण हम लोग तीन अलग अलग समूह में पहुंचे ।
आगे पहुँचने वाली टीम ने मालवण में रूम बुक कर लिए थे । पर बजाय रूम में जाकर आराम करने के आज सभी वाटर स्पोर्ट्स करने के मूड में थे । तो हम चल पढ़े यहाँ से 15 किलोमीटर दूर स्थित देवबाग बीच की ओर ।
छोटी सी जगह है मालवण और उससे भी छोटा है देवबाग ।पर बहुत ही खूबसूरत है देवबाग ।हम जब बीच पर पहुंचे तो मात्र 50 लोग वीच पर थे उनमे भी 28 लोगो का ग्रुप डॉ.अग्रवाल के नेतृत्व में इंदौर से ही आया हुआ था ।कितनी छोटी है ना दुनिया । इसी ग्रुप के साथ आई हुई इंदौर की प्रसिद्द लेखिका ज्योति जैन दीदी से बीच पर मुलाक़ात हो गयी ।
दो छोटी नावों में बैठाकर हम लोगो को समुद्र और क्रीक के संगम को दिखाने ले गए । नाव जब समुद्र की धाराओं के विपरीत जा रही थी तो बड़ी डगमग हो रही थी लेकिन नाविक बड़े धैर्य और विश्वास से उसे आगे ले जा रहा था । मैं सोचने लगा जिन्दगी में भी हमें यही फार्मूला अपनाना चाहिए कि जब भी परिस्थिति विपरीत हो धैर्य और विश्वास के साथ आगे को बढ़ते रहना चाहिए , सफलता तो मिलेगी ही ।
हमारी नाव चला रहे पंकज भाई बहुत जल्दी सबके दोस्त बन गए ।वो हमें डॉलफिन मछली दिखाने समुद्र में और आगे ले गए ।पर डॉलफिन नहीं दिखी । जब लौटने लगे तो एक छोटे से टापू पर हजारों की संख्या में सीगल पक्षी बैठे दिखे । पंकज को बोला कि नाव वहां ले चलो तो उसने टापू से करीब 400 मीटर दूर बीच समुद्र में नाव खड़ी कर दी कि यहाँ से पैदल चले जाओ ।नीचे झाँका तो समुद्र की सतह बड़ी स्पष्ट दिखाई दे रही थी ।सब उतर गए पानी में ।सीगल तक पहुंचे तो सारे उड़ गए ।उफ़ क्या नजारा था हजारों पंछी एक साथ उड़ रहे थे।
इस टापू से वापस पैदल नाव में आये । कुछ आगे बड़े तो एक और टापू दिखाई दिया । यह बीच इतना अच्छा लग रहा था कि यह महसूस हो रहा था मानों यह अपना ही प्रायवेट द्वीप है ।
अचानक मन में यह विचार आया कि आज रात इसी समुद्री तट पर क्यों ना बिताई जाए । प्रस्ताव जैसे ही साथियों के सामने रखा 2-4 को छोड़कर सबी राजी हो गए ।जो बच गए वो भी बाद में राजी हो गए । अब बारी वाटर स्पोर्ट्स की थी । स्पीड बोट,वाटर स्कूटर,बम्पर राइड,जेट स्की और बनाना राइड । कुल मिलाकर बेह्तरीन रोमांचक खेलों का पूरा पेकेज ।सारे साथी ज़िन्दगी का पूरा पूरा मजा जिन्दादिली के साथ ले रहे थे ।भीड़ नहीं होने के कारण सारी राइड्स बहुत अच्छे ढंग से हो रही थी ।
पिछले तीन दिनों से लंच स्कीप कर रहे थे और डिनर ही ले रहे थे। सभी साथियों का यह सहयोग समय बचा रहा था। इसलिए कोशिश करते थे कि रात को डिनर व्यवस्थित मिले ।
अब चूँकि रात यहीं गुजारनी थी तो आसपास ही डिनर की जुगाड़ में लग गए किशनजी,अजय जी और निलेश जी ।कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती । जल्द ही सफलता भी मिली ।वहीँ एक घर पर पूरे किचन पर कब्ज़ा कर लिया भाई बालेश जी और निलेश जी ने । लगभग 1.30 घंटे की इन दोनों साथियों की कड़ी मेहनत से देवबाग में हम सभी के लिए गरमा गरम दाल - चांवल, सेंव की सब्जी ,आलू की सब्जी,रायता और बढ़िया कड़क रोटी तैयार थी । गजब का प्रेमभरा उत्साह और उमंग । दोनों साथियों को मेरा सलाम ।
भोजन करने के बाद हम पहुँच गए अपने प्रायवेट बीच पर जो आज सिर्फ हमारे लिए आरक्षित था । चांदनी रात, समुद्र की लहरों की प्यार भरी गुनगुनाहट और हम 21 लोग एकत्रित थे केम्प फायर के लिए ।शिविर ज्वाल की प्रज्वलित अग्नि भी आज हमारे उत्साह का मानो प्रतिनिधित्व कर रही थी । रात 1 बजे तक खूब सारी मस्ती करते हुए आज की इस हसीन रात की मधुर स्मृतियों को जीवन भर के लिए दिल में संजोये हम बीच पर ही निद्रा के आगोश में पहुँच चुके थे ।
आज का सफ़र
गणपति पुले से रत्नागिरी 24 किलोमीटर
रत्नागिरी से पावस 15 किलोमीटर
पावस से विजयदुर्ग फांटा 27 किलोमीटर
विजयदुर्ग फांटा से देवगढ़ 30 किलोमीटर
देवगढ़ से मालवन 45 किलोमीटर
मालवन से देवबाग 22 किलोमीटर
19 मार्च 2014
सुबह 4.45 को नींद खुली तो यकीं करने में फिर से कुछ क्षण लगे कि हम 21 लोग इतने बड़े बीच पर रातभर अकेले खुले आकाश के नीचे समुद्र से चंद क़दमों की दूरी पर सोये हैं । उठकर थोडा टहलने लगा तो यही लग रहा था कि स्वर्ग की परिकल्पना मनुष्य ने निश्चित ही ऐसे ही किसी वातावरण में ऐसी ही किसी परिस्थिति में की होगी ।
धीरे धीरे सब उठने लगे ।हमारे हर बाइक एक्सपीडीशन में एक बात मैंने शिद्दत से महसूस की कि हर टूर में खून बहुत बढता है । कारण रहता है सुबह उठने से रात सोने तक हँसना हँसना और सिर्फ हँसना । यकीं मानिये कोई भी कुछ बोले उसकी बात खाली तो जायेगी ही नहीं । कोई ना कोई उसकी बात पर ऐसा आडा टेडा सिक्सर जमाएगा कि पूछिए मत । और फिर सिलसिला शुरू हो जाएगा एक से बढकर एक कमेंट्स का । याने कुल मिलाकर लब्बो लुआब यह कि अपनी किस बाल पर आप कब चौको छक्कों का शिकार हो जायेंगे कोई ग्यारंटी नहीं । कुल जमा बात यह है कि हँसते हंसाते मजा लीजिये वर्तमान पलों का ।
सुबह सुबह हमारे ही एक साथी मलिक को सब घेरकर खिलखिला रहे थे ।पता चला कि मेरे सोने के बाद 3-4 मित्रों ने मिलकर दूर गड़े एक खूंटे को मलिक को समुद्री सियार के नाम पर बता कर खूब मजा मस्ती की।हालांकि यहाँ बात शुद्ध रूप से मस्ती में हो रही थी पर मुझे लग रहा था कि किसी ने क्या खूब कहा है कि अपनी कमजोरियों को अपने तक रखो । क्योंकि जहाँ आपने अपनी कमजोरी दुनिया के सामने जाहिर की, दुनिया भर के लोग आपकी मदद तो नहीं, हाँ आपकी इन कमजोरियों से आपको भ्रमित करने,आपका उपहास उड़ाने और इसका फायदा उठाने में तत्पर रहते है ।
8 बजे हम सब तैयार थे अगले रोमांचक खेल "पेरासिलिंग" के लिए । एक बड़ी खूबसूरत सी स्पीड बोट में बैठकर हम लोग समुद्र की लहरों की सवारी पर फिर से निकल पड़े । बोट चालाक ने बताया कि यह बोट और पेरासिलिंग का पूरा तामझाम 70 लाख की लागत से खड़ा हुआ है। सबसे पहले सबसे नौजवान चिराग ने पेरासिलिंग की । wow......क्या नजारा था । मैं पेरासिलिंग पहले भी देश विदेश में कई बार कर चुका था पर इस तरह की बोट से पेरासिलिग़ का यह अनुभव मेरे लिए भी नया था । चिराग के आने के बाद योगेश कंधारी जी हवा में उड़े । इस बीच काकानी जी ने हर बन्दे को समुद्र में डुबकी लगाने के लिए पूर्व में तयशुदा शुल्क से 100 रुपये ज्यादा पर बोट वाले को तैयार कर लिया । भाव ताव करके मामला जमाने के मामले में काकानी जी और कंधारी जी लाजवाब है ।
नीचे लाते समय बोट वाले ने कंधारी जी को डुबकी लगवाई तो सब भयमिश्रित कौतूहलता से उन्हें निहार रहे थे ।पर अचानक .... हे भगवान ! यह क्या हो रहा है बोट चालक पेरासिलिंग को डुबकी मारने के बाद ऊपर ही नहीं उठा पा रहा है । जिसका परिणाम यह हुआ कि योगेशजी घबराहट में पानी में हाथ पैर मार रहे है और गुब्बारे की बहुत सारी रस्सियाँ उनके चारों तरफ उलझ गयी है। वैसे लाइफ जेकेट योगेशजी ने पहनी हुई थी फिर भी तत्काल बोट स्टाफ के दो सदस्य सहायता के लिए समुद्र में कूद पड़े । जब ऊपर आये योगेशजी तो थोड़े असहज पर ठीक थे ।अब मेरा नंबर था पेरासिलिंग पर जाने का पर इस बीच गुब्बारे की रस्सी सुलझाते सुलझाते पता लगा कि गुब्बारा फट गया है और वह मालवण में ही ठीक होगा ।इस बीच समुद्र में थोड़ी देर इस एपिसोड के कारण हमारी बोट जब खड़ी रही आसपास सैकड़ो की संख्या में डॉल्फिन मछलियां एकत्रित हो गयी थी और अपनी दुनियाभर में प्रसिद्द कूद से हमें आकर्षित कर रही थी । योगेश भाई जब सेटल हुए तो बोले जेब में पता नहीं क्या क्या था जो डूबने के कारण समुद्र में चला गया ।बोले कि शायद अतुल भाई की बाइक की चाभी भी समुद्र में चली गयी। हमें लगा वो मजाक कर रहे है। बोट हमें वापस किनारे ले आई जहाँ नारियल के पेड़ों की छाँव में लगे झूलों में हम सब इन्तजार कर रहे थे गुब्बारे के ठीक होने का । इस बीच बालेश जी, अतुल जी और महेशजी बेहतरीन प्याज का छौंक लगाकर गरम गरम इंस्टट पोहे बना लिए जो हम सब ने छक कर खाए । तीन घंटे गप्पों में कब गुजर गए मालूम ही नहीं पड़ा । हमारा स्कूबा ड़ाइविंग का समय हो चुका था तो हम सब देवबाग़ से निकलने लगे । देखते है कि योगेश भाई अपने बेग से लेकर सब सामान चेक कर बताने लगे कि चाभी सच में समुद्र में गिर गयी है । हम सभी अतुल भाई की यामाह को वहाँ छोड़ मालवण निकल पड़े ।
मैं तो इस बीच की सुन्दरता का दीवाना हो चुका था ।मन ही मन तय कर बैठा कि अब परिवार/दोस्तों के परिवार के साथ देवबाग़ जरुर आना है ।अलविदा देवबाग - फिर मिलेंगे ।
मालवण में अतुल भाई और महेश भाई कोशिश किये कि कोई चाभी बनाने वाला मिल जाए जो देवबाग़ चल सके पर कोई नहीं मिला । ऐसे में फिर महेश भाई और कार चालक देवेन्द्र भाई पिन्चिस पानों का इंतजाम कर देवबाग निकल पड़े ।महेश पोरवाल जी की इस सेवा भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया ।आसान कार्य नहीं होता है अपने मनोरंजन को छोड़ किसी की सहायता करना। बाकि सदस्य निकल पड़े स्कूबा डाइविंग के लिए ।मैं मालवण में उनका इन्तजार करता रहा और समय का सदुपयोग यह यात्रा वृतांत लिखने में करने लगा । लगभग 3 बजे दोनों टीम वापस आ गयी अपने अपने मिशन में कामयाब होकर । महेशजी और देवेन्द्र यामाह का हेंडल लाक खोल उसे डायरेक्ट स्टार्ट मोड में कर ले आये थे तो बाकी सदस्य समुद्र की गहराइयों में जाकर कोरल और मछलियों से मुलाक़ात के अनुभव से रूबरू होकर प्रसन्नचित प्रतीत हो रहे थे ।
ठंडा जूस पीकर हम लोग अब निकल पड़े गोवा के लिए ।रास्ते थोड़े परिवर्तित हो चले थे ।पहले जहाँ चारो ओर आम ही आम के वृक्ष दिखाई देते थे अब काजू के वृक्ष ज्यादा दिख रहे थे ।सड़के थोड़ी ज्यादा चौड़ी होती जा रही थी । रात 8.30 बजे हम मीरामार पर स्थित यूथ हॉस्टल में पहुँच गए ।स्नान कर पड़ोस में स्थित फूडलेंड रेस्टोरेंट में डिनर करने पहुंचे। खूबसूरत वातावरण में पुराने फ़िल्मी गाने लाइव सुनते हमने डिनर किया । और कमाल देखिये कि गोवा जैसी जगह में हम 10.45 पर अपनी डॉरमेटरी में सोने पहुँच चुके थे ।कुछ साथियों की बैचेनी देखने लायक थी और वे अपने आप को समझा रहे थे, आपस में बात कर समझ समझा रहे थे कि यार कल की रात बाकी है अभी गोवा में। याने कल हम सब की परीक्षा की घडी आने वाली थी ।
आज का सफ़र
देवबाग से मालवन 22 किलोमीटर
मालवन से पंजिम 130 किलोमीटर
20 मार्च 2014
सुबह 5 बजे उठ गया ।यह सुबह जल्दी उठने वाली आदत बहुत काम आती है । श्रीकांत जी भी रोज जल्दी उठ जाते है तो एक तो हमारी प्लानिग मीटिंग सुबह सुबह हो जाती है और दूसरे हम घूमने निकल पड़ते है । हमारी खुसुर फुसुर सुन किशन जी, अजय गुप्ता जी, योगेश जी, दीपक जी,राजेश अग्रवालजी, अतुल जी और चिराग भी 5-10 मिनिट के अन्तराल में नीचे आ गए मॉर्निंग वाक् के लिए ।जहाँ हम ठहरे थे वही पीछे ही समुद्र का किनारा था । मुहँ अँधेरे समुद्र की लहरों की अनुभूति करते गीली रेती में टहलना बहुत आनंददायक लग रहा था । भजन भी हम लोग सैर करते करते कर लिए । योग राजेश अग्रवाल जी और दीपक जी करा दिए ।
9 बजे हम लोग निकल पड़े साउथ
गोवा की ओर ।लक्ष्य था मडगांव के आगे तिलोमल में स्थित निर्मल नेचर स्काउट ट्रेनिंग सेंटर ।मडगांव पहुंचे तो सबको भूख लगी हुई थी ।बढ़िया रेस्टोरेंट मिल गया तो सबने डटकर ब्रंच कर लिया ।ट्रेनिंग सेंटर पहुंचे तो जेम्स फ़र्नान्डिस सर स्वागत के लिए मौजूद थे । 4 साल पुरानी विजयंत स्काउट ग्रुप के केम्प की यादे ताजा हो गयी जब हम ग्रुप के 150 सदस्य यहाँ 5 दिन रहे थे । बहुत आनंद आ रहा था । ट्रेनिंग सेंटर सर ने और भी व्यवस्थित कर लिया था । काजू का फल और कोल्ड ड्रिंक पीकर केम्प साईट से विदा हुए ।
हम लोगो का अगला टारगेट था पालोले बीच जो हिन्दुस्तान के सबसे खूबसूरत बीच में से एक माना जाता है ।वहां तक पहुँचते पहुँचते यात्रा का दूसरा पंचर हुआ अतुल जी की बाइक का ।
आधे से अधिक लोग पालोले बीच पर पहुँच चुके थे । बाकी लोग करीब 1.30 घंटे बाद पंचर पकवाकर बीच पर आये ।
बहुत छोटा और बहुत खूबसूरत बीच है यह ।लगभग 80% उपस्थिति विदेशी सैलानियों की यहाँ रहती है । साफ सुथरा पानी । बड़ी बड़ी लहरे । छोटे मोटे वाटर स्पोर्ट्स ।कुल मिलाकर पूरे दिन भर खूब मौज मजा मस्ती की ।पानी से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था ।
पर रात 8 बजे हमें वापस पंजिम पहुंचकर क्रुज की सैर करनी थी ।लगभग 6 बजे हम सब निकल पड़े 65 किलीमीटर के अपने सफ़र पर।रास्ते में ट्रेफिक ज्यादा होने के कारण हम क्रूज छूटने के टाइम पर ही पहुंचे । क्रूज पर हम 14 लोग ही पहुँच पाए बाकी साथी या तो थकावट के कारण सीधे यूथ होस्टल पहुँच गए या लेट हो जाने के कारण क्रुज पर सवार नहीं हो पाए ।
1घंटे में 3 गोवा संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले नृत्य और अलग अलग समूहों में डिस्को करते देखते समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला । पर पूरी महफ़िल लूट ले गया वह नवविवाहित नशे में चूर एक युगल दंपत्ति । अपने मनमोहक नृत्य से उस नवयुवती ने सबको मोह लिया ।आज फिर से फ़ूडलेंड में डिनर लेकर हम 11 बजे तक यूथ हॉस्टल आ गए ।मजाक मजाक में रात को माहौल बनने लगा गोवा की नाईट लाइफ़ देखने का।पर मेरे विनम्रतापूर्वक निषेध आग्रह को सम्मान देते हुए सभी ने मजाक की बात मजाक में ही समाप्त कर दी.
आज का सफ़र
पंजिम से पलोले बीच 70 किलोमीटर
पलोले बीच से पंजिम 70 किलोमीटर
21 मार्च 2014
सुबह का बीव भ्रमण कार्यक्रम आज एच्छिक था। जो लोग देर तक सोना चाहते थे वे यही रूक गये शेष 15 साथी सुबह 7 बजे निकले कलिंगवूट बीच पर ।आसपास के कोलेंडीयम और वागा बीच देखते हुए अंजुना बीच घूमे ।अंजुना बीच इन तीनो बीच में ज्यादा खूबसूरत लगा ।
11 बजे गोवा को अलविदा कहते हम निकल चले कोल्हापुर की ओर।सावंतवाडी पर अच्छी लस्सी मिल गयी । अच्छी जगह है सावंतवाडी भी ।यहाँ से अम्बोली के घने,गर्मियों में भी हरे भरे रहनेवाले,अनेक जलप्रपातों से शोभित खूबसूरत जंगलों वाले घाट को निहारते हुए आगे बड़ चले । घाट समाप्त होते ही छोटे से मंदिर में सबने विश्राम किया । योगेशजी,राजेशजी और दीपकजी बाजू की दूकान से नमक निम्बू ले आये और शिकंजी बना सब को पिला दी । आजरा होते हुए कर्नाटक प्रान्त का कुछ हिस्सा हमारे रास्ते में आया ।कोल्हापुर से 10 किलोमीटर पहले इंडसट्रियल एरिया में मेरे साले साहब सत्येन की आइसक्रीम बनाने की फेक्ट्री का अवलोकन करते हुए आइसक्रीम का स्वाद लिया । कोल्हापुर में मेरे फूफा ससुर साहब मनोहर जी शर्मा ने ही हम सभी के भोजन और ठहरने की व्यवस्था अपने हाथों में ली हुई थी । फूफाजी के घर पर पारंपरिक सुस्वादिष्ट महाराष्ट्रियन भोजन का आनंद लेते हुए 20-20 वर्ल्ड कप के भारत पकिस्तान मैच में भारत को विजयी होते हुए देखा। फूफाजी का पूरा परिवार हम लोगो की सेवा सुश्रुणा में दिल से लगा हुआ था ।
घर से दूर घर का वातावरण मिलने पर सभी साथी बहुत प्रसन्न थे । ह्रदय से शर्मा परिवार को धन्यवाद देते हुए हम सभी उन्ही के नए फ्लेट में पहुंचे जहाँ उन्होंने हमारी पूरी टीम के रात्रि विश्राम का बहुत ही माकूल इंतजाम किया हुआ था । धन्यावाद फूफाजी ।
आज का सफ़र
पंजिम से सावंतवाड़ी 61 किलोमीटर
सावंतवाड़ी से कोल्हापुर 146 किलोमीटर
22 मार्च 2014
सुबह हम सभी उठकर दैनिक क्रियाकलापों से निवृत हो ही रहे थे कि 6 बजे फ्लेट में घंटी बजी। साथियों ने दरवाजा खोला तो भुआ फूफाजी सामने खड़े थे। वे हम सभी के लिए चाय-बिस्किट लाये थे। मन श्रद्धा से अभिभूत हो उठा। आपसे बहुत सिखने को मिल रहा है फूफाजी।
सत्येन भी सुबह 7 बजे तैयार होकर हमारे बीच उपस्थित था। जब तक हम तैयार हो रहे थे उसने हमें एक नया रूट सुझाया कि हम लोग सतारा से पूना जाने के बजाय सतारा से शिरूर चले जाए तो हमारा बहुत समय बच जाएगा ।
हमने इसी सुझाव को अमल में लाने का फैसला लिया। ट्रक वाले को फ़ोन लगाया तो पता चला वह भी शिरूर के आसपास ही खड़ा है ।पर इस बातचीत के बीच उसने बताया कि भिवंडी से जो पार्टीशन प्लाई,बेड प्रोफाइल,रजाई,चादरे इत्यादि जो भी सामान यहाँ आना था वह अभी तक नहीं आउअ है। लगातार इंदौर,भिवंडी और शिरूर बात कर इस समस्या को हल किया। अब भिवंडी से छोटा टेम्पो हमारा सामान लेकर शिरूर ट्रक वाले के पास आ रहा था ।
इसी बीच रात को हुई चर्चानुसार रमेशजी और बालेशजी सुबह 7 बजे बालेशजी की बहन जो पूना में रहती थी,से मिलने रवाना हो चुके थे,उन्हें भी हमने रास्ते में रोक लिया। क्योंकि अब हमें पुना न जाते हुए शिरूर जाना था ।
कोल्हापुर प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर दर्शन करने के पश्चात पन्हाला रोड स्थित महराष्ट्र भारत स्काउट एवं गाइड के ट्रेनिंग सेंटर को देखते हुए वहां चाय पीकर हम लोग सतारा के लिए निकल पड़े। रास्ते में रमेशजी और बालेशजी ने हम लोगो के लिए पोहा,भजिये और मिसल तैयार करवा रखे थे। नाश्ता करते हुए आगे बड़े सतारा पहुंचे। एक मोटर बाइक बड़ी रुक रुक कर चल रही थी महेशजी और उनके साथ चल रहे साथियों ने उसका पलक चेंज कराया ।
सतारा में हमारा स्वागत सीनियर स्काउट मास्टर श्री सर ने किया।शिंदे सर पिछले आठ दिनों से रोज फ़ोन करके हमसे हाल चाल पूछ लेते थे। वे अपने घर हम सभी को ले गए और तपती दोपहर में कोल्ड्रिंक,तरबूज,खरबूज,अंगूर और केले इतनी भरपूर मात्रा में प्रेमपूर्वक आत्मियता के साथ खिलाये पिलाए कि हमारा तन मन सभी तृप्त हो गए।
उनका स्वयं का सर्विस सेंटर था तो उन्होंने आते ही सभी की बाइक सर्विसिंग पर लगवा दी। मुझसे तीन बार पूछा कि सभी की तबियत तो ठीक है। अगर कुछ भी समस्या हो तो हम हास्पिटल चल सकते है। हम सभी अभिभूत थे उनके इस सत्कार पर। सर ! स्काउटिंग आपने पड़ी नहीं है अपितु स्काउटिंग को आप सही अर्थों में जी रहे है। स्काउट सेल्यूट सर ।
कल रात को ही राजेश अग्रवाल जी के कोल्हापुर में परिचित जैन साहब से भी मुलाक़ात हुई थी,उनका भी कितना प्रेमपूर्ण जबरदस्त आग्रह था कि हम सभी आज का नाश्ता उनके यहाँ करे।
वही किशन थावरानी जी के परिचित भी 30 किलोमीटर से उन्हें मिलने आये तो हमें बारम्बार आग्रह करते रहे कि हम उनके मेहमान बने। हमारी असमर्थता जताने पर आज उन्होंने किशन जी के साथ बहुत सारा नाश्ता भेज दिया ।
मैं बार बार सोचता हूँ आज जब सगे रिश्ते तार तार हो रहे है प्रेम के अभाव में। तब हम परदेशियों से इतना प्यार,इतना स्नेह और इतनी परवाह करने वाली उन सभी तमाम विभूतियों को ह्रदय की गहराइयों से शत शत नमन जो हमें जीने का सही तरीका सिख रही है कि सच्ची ख़ुशी सिर्फ और सिर्फ बांटने से ही मिलती है।
शिंदे सर के स्नेह लदे हुए हम मोरगांव अष्टविनायक में से एक विनायक मंदिर के दर्शन करते हुए चौफुला पहुंचे ।यहाँ ट्रक हमारा इन्तजार कर रहा था।याने हमारी बाइक एक्सपीडीशन अब संपन्न हुई। कुल 1400 किलोमीटर का सफ़र हमने बाइक पर परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकम्पा एवं स्नेही जनों की दुआओं की बदौलत सकुशल पूरा कर लिया था ।
अतुलजी और योगेशजी दोनों पूरी तत्परता से बगैर किसी के निर्देश पर भीड़ गए ट्रक में मोटर बाइक रखने एवं हमारी व्यवस्था करने में। उन दोनों के निर्देशन में हम सभी ने मिलजुलकर अपनी सारी बाइक और सामान ट्रक पर चड़ा दिया ।
रात को शिरूर में डिनर लेते हुए यह तय किया कि रात में शनि शिंगनापुर और शिर्डी होते हुए इंदौर चलेंगे।
आज का सफ़र
कोल्हापुर से सतारा 124 किलोमीटर
सतारा से शिरूर 163 किलोमीटर
23 मार्च 2014
सुबह 6.30 बजे ड्राईवर की आवाज से सबकी नींद एक साथ खुली।हमें लगा शिर्डी आ गया।पर पता लगा कि हम शिर्डी को तो 125 किलोमीटर पीछे छोड़ आये है। ड्राईवर से पूछा तो वह बोला कि आप सब सो रहे थे तो सोचा कि अब इतनी रात को कौन दर्शन करेगा।इसलिए मैं ट्रक आगे ले आया।कई साथी थोडा उदास हो गए और यह कहकर एक दूसरे को सांत्वना देने लगे कि शायद बाबा का बुलावा नहीं था।वैसे हम थकान के मारे सोये भी इतने बेहोश होकर थे कि कार से हमसे आगे चल रहे हमारे चारों साथी रात 3 बजे पहले शनि शिगनापुर एवं फिर शिर्डी से लगातार हम सभी को sms एवं फ़ोन करते रहे पर नींद का आलम ये था कि हम कोई भी नहीं उठे। हमने उन्हें फ़ोन लगाया तो नो रिप्लाई हो रहा था। हमने मेसेज छोड़ दिया कि हम धुलिया से सेंधवा की ओर निकल रहे है।7.30 बजे दीपकजी का फ़ोन आया कि उनके शिर्डी दर्शन हो गए है।अब वे थोडा ड्राईवर को आराम देकर आगे इंदौर के लिए निकलेंगे।
रमेशजी ने सेंधवा गायत्री आश्रम बंटी भैया को फ़ोन कर दिया था। हम लोग वहां पहुंचकर दैनिक कार्यों से निवृत हुए तो नाश्ता तैयार था । सेवाभावना का एक और नजराना हमारे सामने था ।करीब 200 किलो टमाटर हम सभी के हाथो बंटी भैया ने गायों को खिलवाए।
यही हम लोगो ने आपस में गले मिलकर परम्परानुसार एक्सपीडीशन समाप्ति कार्यक्रम संपन्न किया।
लगभग 11.30 बजे हम सेंधवा से निकले इंदौर के लिए। धूप से बचने के लिए हमारी शाही सवारी पर ड्राईवर ने बड़ी सफ़ेद चादर बाँध दी थी। थकान के मारे हालात ऐसे थे कि किसका हाथ किसके ऊपर, किसके पैर कहाँ पड़े थे कोई ठिकाना नहीं था। बेहतरीन नींद निकालते हुए हम इंदौर पहुंचे।
वाकई अपना इंदौर तो अपना ही है। इतनी जगह घूमे फिरे मजा किया पर अपने घर लौटने का जो आनंद होता है वह वर्णनातीत है। हमारे स्वागत के लिए कांतिलाल जी,सुनील जी,विनोदजी, राकेशजी,बिंदिया जी एवं साथ गए साथियों के परिवारजन मौजूद थे। राकेशजी मेहता स्वागत की पूरी तैयारी से थे। उन्होंने रंग गुलाल लगाकर और कांतिलाल जी ने फूलमाला पहनाकर हमारा आत्मीय स्वागत किया। इसके साथ ही हीरा की ठंडी ठंडी लस्सी के रूप में आठ दिनों के बाद इन्दोरी स्वाद से रूबरू होने का आनंद आनंद लिया तो आत्मा तृप्त हो गयी। सब लस्सियों पर भारी थी हीरा की अपनी लस्सी। कांतिलाल जी और सुनील जी फटाफट ट्रक में चढ़ गए और मोटर बाइक नीचे आने लगी।
अब बगैर देर किये सब चल दिए अपने अपने घर की ओर इस एक्सपीडीशन की मधुर स्मृतियों को हमेशा के लिए अपने दिलों में बसाए।
मैं भी घर लौटते हुए शुक्रिया अदा कर रहा था परमपिता परमेश्वर का जिसकी असीम अनुकम्पा से हमारी यह एक्सपीडीशन निर्विघ्न रूप से सकुशल संपन्न हुई। मन ही मन ह्रदय से आभार महसूस कर रहा था उन सभी स्नेहीजनों के प्रति जिनकी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद एवं दुआओं की बदौलत यह अभियान पूरा हुआ।
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